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आज मुहब्बत के रौनक में नव चिराग़ देने को चल।

पुण्य पथों पर चलते रहना इस सूरज सा जलते रहना।

कार्य कठिन है किंतु साहब तुझमें भी बहुत  दिलेरी है।
नाग कालिया के फन पर नर्तन भी  बहुत   जरूरी   है।

जो लोग कफ़न में पलते हैं तुफां में     सदा मचलते हैं।
और उन्हीं के इच्छा से पत्थर  भी   यहां  पिघलते  हैं ।
जो लोग शहादत को जन्मे उनका सम्मान जरूरी है।
जो आज बगावत पर उतरे उनका उन्वान  जरूरी है।

कर्ण प्रिए लफ्जों रागों से जिनका कोई   संबंध नहीं।
उनके पवित्र सागर से मन में    है  कोई  तटबंध  नहीं ।
वो जो भी हैं पिक पिपासु उनका अपमान जरूरी है।
जो शाहों का तलवा चांटें उसमें   बेजान   जरूरी है।

कुछ लोग मोहब्बत को अक्सर बेमतलब यार समझते हैं।
कुछ लोग मोहब्बत को अपना ताजों हथियार समझते हैं।
जो कर दे सर्वस्व समर्पण उनमें ही     सही   दिलेरी है।
जिसने उल्फत में जान दिया उसका सम्मान जरूरी है।

आज मुहब्बत के रौनक में नव चिराग़ देने को चल।
आज समन्दर के लहरों को अप्रतिम राग देने को चल।
आज स्वांस के आवाज़ों में होना अनुराग जरूरी है।
आज अतुलित बल  पाने को रग रग में राग जरूरी है।

©®
कवि दीपक झा "रुद्रा"

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10 Comments

Sandeep Kumar Mehrotra

20-Jan-2022 01:04 PM

अनुमप

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Punam verma

20-Jan-2022 09:19 AM

Nice

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Shrishti pandey

20-Jan-2022 08:37 AM

Very nice

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